वैसे तो दुनियांभर, विशेषकर भारत जैसे एशियाई देशों में अंध-विश्वास और निरर्थक मान्यताओं पर भरोसा करने वाले लोगों की कोई कमी नहीं है, लेकिन फिर भी कुछ अवधारणाएं ऐसी होती हैं जिन्हें बेमानी समझकर नकार देना वाकई मुश्किल हो जाता है. पहले तो फिर भी शिक्षा या विज्ञान का इतना प्रचार-प्रसार नहीं था लेकिन आज के वैज्ञानिक और तकनीक प्रधान युग में भी कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं जिन्हें पौराणिक मान्यताओं के अलावा विज्ञान का भी पूरा-पूरा समर्थन मिलता है. ऐसी ही मान्यताओं या फिर घटनाओं में से एक है पुनर्जन्म की अवधारणा, जिसे हिंदू धर्म में पूर्ण स्वीकृति मिल चुकी है लेकिन फिर भी विज्ञान हमेशा इसे नकारता ही रहा है. लेकिन कुछ समय पहले तक जिसे तमाम बुद्धिजीवी और विज्ञान की अच्छी समझ रखने वाले लोग एक मजाक समझते थे आज वह पुनर्जन्म जैसी घटनाओं पर संदेह कर पाने में अक्षम हैं.
क्या कहता है हिंदू धर्म
हिंदू मान्यताओं के अनुसार व्यक्ति का पुनर्जन्म अवश्य होता है लेकिन ऐसा कहीं भी उल्लेख नहीं किया गया है कि मरने के तुरंत बाद व्यक्ति का पुनर्जन्म हो जाता है. अगर हिंदू मान्यताओं पर विश्वास किया जाए तो मृत्यु के बाद आत्मा इस वायुमंडल में ही चलायमान होती है. लेकिन उसे एक न एक दिन नया शरीर जरूर लेना पड़ता है. ज्योतिष शास्त्र में पुनर्जन्म की अवधारणा को ज्यादा प्रमुखता से दर्शाया गया है. धर्म में जिसे प्रारब्ध कहा जाता है, यानि पूर्व कर्मों का फल, वह ज्योतिष का ही एक हिस्सा है. इसलिए ज्योतिष की लगभग सारी विधाएं ही पुनर्जन्म को स्वीकार करती हैं. ज्योतिष के अनुसार यह माना जाता है कि हम अपने जीवन में जो भी कर्म करते हैं उनमें से कुछ का फल तो जीवन के दौरान ही मिल जाता है और कुछ हमारे प्रारब्ध से जुड़ जाता है. इन्हीं कर्मों के फल के मुताबिक जब ब्रह्मांड में ग्रह दशाएं बनती हैं, तब वह आत्मा फिर से जन्म लेती है और इस प्रक्रिया में कई साल भी लग सकते हैं और कई दशक भी.
पुनर्जन्म का वैज्ञानिक पहलू
वर्तमान समय में पुनर्जन्म केवल एक धार्मिक सिद्धान्त मात्र नहीं रह गया है क्योंकि इस पर अनेक विश्वविद्यालयों एवं परामनोवैज्ञानिक शोध संस्थानों में ठोस कार्य हुआ है. जिसके परिणामस्वरूप आज यह अंधविश्वास नहीं बल्कि वैज्ञानिक तथ्य के रुप में स्वीकारा जा चुका है. सृष्टि पर पुन: आगमन को तथ्यात्मक प्रमाणित करने वाले आज अनेक साक्ष्य विद्यमान हैं. इनमें से सबसे बड़ा प्रमाण ऊर्जा संरक्षण का सिद्धांत है. विज्ञान के सर्वमान्य संरक्षण सिद्धांत के अनुसार किसी भी अवस्था या परिस्थिति में ऊर्जा का विनाश नहीं हो सकता केवल उसका स्वरूप परिवर्तित किया जा सकता है. जिस प्रकार ऊर्जा नष्ट नहीं होती, वैसे ही चेतना का नाश नहीं हो सकता. पुनर्जन्म का भी यही सिद्धांत है. हमारा भौतिक शरीर पांच तत्वों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से मिलकर बना है. मृत्यु के पश्चात शरीर पुन: इन्हीं पांचों तत्वों में विलिन हो जाता है. किसी कारण, आवश्यकता या परिस्थिति के अनुसार यह आत्मा शरीर को छोड़कर मुक्त हो जाती है. एक निर्धारित समय तक मुक्त रहने के पश्चात आत्मा अपने पूर्व कर्मों एवं संस्कारों के अनुसार पुन: एक नया शरीर प्राप्त करती है. लेकिन सभी वैज्ञानिक समान रूप से पुनर्जन्म की अवधारणा पर विश्वास नहीं करते. जहां कुछ वैज्ञानिक इसे अंधविश्वास मानते हैं वहीं कुछ इसे हकीकत मानकर इस पर रिसर्च कर रहे हैं.
विज्ञान की तरह अलग-अलग धर्मो और सम्प्रदायों में भी पुनर्जन्म के विषय में अलग-अलग विचारधाराएं विद्यमान हैं. भारत में पुनर्जन्म हमेशा से ही एक चर्चा और बहस का विषय रहा है. हिन्दू, जैन, बौद्ध धर्म के ग्रंथों में इनका उल्लेख पाया जाता है. यह माना जाता है कि आत्मा अमर होती है और जिस तरह इंसान अपने कपड़े बदलता है उसी तरह वह शरीर बदलती है. मनुष्य को अगला जन्म अच्छी या ख़राब जगह जन्म पिछले जीवन के पुण्य या पाप की वजह से मिलता है. वहीं कुछ पश्चिमी देशों में भी इन धारणाओं पर विश्वास किया जाता है. प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात, प्लेटो और पैथागोरस भी पुनर्जन्म पर विश्वास करते थे. ईसाई और इस्लाम में इसे मान्यता नहीं है. परन्तु कुछ धर्म के अनुयायी इसे व्यक्तिगत विचारों पर छोड़ देते हैं.
आज भी पुनर्जन्म एक अबूझ पहेली ही है. जहां एक ओर विज्ञान कहता है कि इस सृष्टि में पुनर्जन्म जैसी कोई व्यवस्था नहीं है वहीं चिकित्सा विज्ञान कहता है कि पुनर्जन्म होता है. कुल मिलाकर यह समझ पाना अभी भी मुश्किल ही है कि कोई व्यक्ति मरने के बाद फिर से जन्म ले सकता है या नहीं?
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